गीत लिखे भी तो ऐसे के सुनाए ना गए। ज़ख्म यू लफ्जो में उतरे के दिखाए ना गए। आज तक रखे है पछतावे की अलमारी में। एक दो वादे जो दोनों से निभाए ना गए। तेरे कुछ ख्वाब जनाज़े है मेरी आंखो मे। वो जनाज़े जो कभी घर से उठाए ना गए। मै दे रहा था सहारे तो एक हुजूम में था। जो गिर पड़ा तो सभी रास्ते बदल ने लगे। Farhat Abbas shah.