एक माँ ही है जिसकी दुआ बेकार नही जाती, छुपा अश्क को माथे पर शिकन तक नही आती, उसके दिल के कोने से लेकर उसकी रूह तक, खुद को छोड़ सबकी फिक्र उसको है खाये जाती, उसके उर से ही हम उर्जित होकर भी हम लोग, उसको नही समझ सके,वो बिन कहे समझ जाती, खुदा बना उस मूरत को आज बेरोजगार हो गया, जरा से गम आने पर माँ ही फिर मरहम बन जाती। ♥️ Challenge-567 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ विषय को अपने शब्दों से सजाइए। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।