मैं गफलत में उलझता रहा,फ़िज़ूल किस्सा वो सुनाती रही,मन के भावों को वो सपष्ट करती रही,मैं बातो में फँसता गया,नौबत नहीं आईं थी उसे मुझे छोड़ने की,पर वो बदलती गई, मैं गफलत में उलझ भरोसा कर खुद कसूरवार बनता रहा. Mudit