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तुम्हारी सादगी पर मर मिटे हम...। जाने किस क़दर तु

तुम्हारी 
सादगी पर 
मर मिटे हम...।
जाने किस क़दर तुम 
पहली दफ़ा नज़र आए थे।
आम चहरों की तरह नही था चहरा तुम्हारा..।
तुम्हारे चहरे पर चाँद के हसीं साए थे।
और वो लम्हा भला वो कैसे भूल सकता हूँ मैं.....
जब एक अविस्मरणीय लम्हा बनकर तुम मेरे सामने आए थे।

©V.k.Viraz Neetu Sharma  indira Sanam shona Saheb indu singh
तुम्हारी 
सादगी पर 
मर मिटे हम...।
जाने किस क़दर तुम 
पहली दफ़ा नज़र आए थे।
आम चहरों की तरह नही था चहरा तुम्हारा..।
तुम्हारे चहरे पर चाँद के हसीं साए थे।
और वो लम्हा भला वो कैसे भूल सकता हूँ मैं.....
जब एक अविस्मरणीय लम्हा बनकर तुम मेरे सामने आए थे।

©V.k.Viraz Neetu Sharma  indira Sanam shona Saheb indu singh
vkviraz9338

V.k.Viraz

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