हाथों की गर्माहट कौन चुरा रहा है ये दूरियाँ दरम्यां कौन बढ़ा रहा है वो जो बेतहाशा दौड़ता जा रहा था देखो ख़ाली हाथ घर को आ रहा है मुफ़्त तहज़ीबों का मशविरा रहा है समय जो चूका वही पछता रहा है तरक़्क़ी की बघारी शेखियाँ तमाम मुक़ाबिल ख़ुद ही मुँह की खा रहा है कौन है जो अब भी समझ ना पा रहा है वक़्त मौत का मर्सिया गा रहा है क़ुदरत और इंसानियत को देता धोखा रहा है आदमी शायद क़ीमत वही चुका रहा है #toyou #yqdejection #yq COVID19 #yqpandemic #yqfear #yqprayer #yqreflection