तू कही सांझ सी ढलती गई, मेरी नजरों से ओझल कहीं,उदासी से झुकती नजर, ढूंढती फिरती इधर -उधर ! तू तो लालिमा थी, प्रकाश की, केसरिया रंग ओढ चली! शीतल मन अब चाँद निहारे, निशी-दिन जागे तेरी "विरहन" घूंघट की ओट में थी, बन कर चल दी । वो "पनिहारन" #वो_दिन #वोघूँघट की ओट में थी , #विरहन #पनिहारन