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''जबसे है समझा तुझे, जबसे है जाना तुझे, मेरे रोम-र

''जबसे है समझा तुझे,
जबसे है जाना तुझे,
मेरे रोम-रोम में तू,
मेरा लक्ष्य पाना तुझे।"
 कभी-कभी यूँ ही जब कुछ सोचता हूँ, मन में नाना प्रकार के ख्याल कौंधते हैं हर किसी का अपना तर्क होता है। लेकिन कुछ विचार लीक से हटके होते हैं जिनके बारे में हमारा मन-मस्तिष्क सोचने से कतराता है वो है 'रिजेक्शन' का। कोई भी नहीं चाहता कि वो किसी के द्वारा कभी भी reject हो चाहें Job में, चाहे प्यार में या और कहीं।
प्यार का case अत्यंत रोचक है जो काल-कालांतर से चला आ रहा है और चलता रहेगा। लेकिन आधुनिक सोच ने प्यार को अलग तरह से परिभाषित करने की कोशिश की है खासकर से जबसे पूंजीबाद (Capitalism) मुख्य धारा में आया है लेकिन अघ्यात्म की दृष्टि से प्यार का स्वरूप हमेशा एक समान रहता है।
मैं आधुनिक प्यार के विचार एक पल भी विना सोचे रिजेक्ट करने से नहीं कतराउंगा लेकिन समस्या उसके बाद शुरू होती है।
दरअसल वर्तमान समय में भारतीय समाज और संस्कृति Transformation से गुज़र रही है और Intermediate अवस्था में है। ये अवस्था सबसे ज्यादा अस्थायी होती है और इसमें deformation के chances ज्यादा होते हैं। ये जो cocktel है ना ये हमारी सांस्कृतिक परंपरा को खा रही है और हमको आभास भी ना हो रहा।
कुछ लोगों का मानना है कि 'Love u' बोलना आसान है मैं इस कथन से पूर्ण सहमत हूँ लेकिन उससे भी ज्यादा आसान है उसको एक पल में रिजेक्ट कर देना, विना हक़ीक़त को जाने। लेकिन उसके पीछे के छिपे पहलू को समझने की भी तो कोशिश करो एक बार।
ये बात सच है कि लोगों की धारणा ही बदल गयी है प्यार को लेकर, वो भौतिक सुख ( वासना) को ही प्यार मानकर जीवन में आगे बढ़ते हैं लेकिन क्या हर कोई ऐसा सोचता है? मेरा सवाल बस इतना है कि क्या दुनिया में कोई भी ऐसा नहीं है जो पप्यार के वास्तविक स्वरूप में विश्वास करता है? मेरा विश्वास है कि ऐसे अनगिनत लोग होंगे जो इसमें भरोसा रखते हैं इसका जीवन में आचरण करते हैं।
लेकिन उनको बाकी लोगों की तरह मानना कितना जायज़ है? भले ही वो minority हैं लेकिन सही मायनों में सच्चे प्रेम का हक़ तो उनको ही है।
''जबसे है समझा तुझे,
जबसे है जाना तुझे,
मेरे रोम-रोम में तू,
मेरा लक्ष्य पाना तुझे।"
 कभी-कभी यूँ ही जब कुछ सोचता हूँ, मन में नाना प्रकार के ख्याल कौंधते हैं हर किसी का अपना तर्क होता है। लेकिन कुछ विचार लीक से हटके होते हैं जिनके बारे में हमारा मन-मस्तिष्क सोचने से कतराता है वो है 'रिजेक्शन' का। कोई भी नहीं चाहता कि वो किसी के द्वारा कभी भी reject हो चाहें Job में, चाहे प्यार में या और कहीं।
प्यार का case अत्यंत रोचक है जो काल-कालांतर से चला आ रहा है और चलता रहेगा। लेकिन आधुनिक सोच ने प्यार को अलग तरह से परिभाषित करने की कोशिश की है खासकर से जबसे पूंजीबाद (Capitalism) मुख्य धारा में आया है लेकिन अघ्यात्म की दृष्टि से प्यार का स्वरूप हमेशा एक समान रहता है।
मैं आधुनिक प्यार के विचार एक पल भी विना सोचे रिजेक्ट करने से नहीं कतराउंगा लेकिन समस्या उसके बाद शुरू होती है।
दरअसल वर्तमान समय में भारतीय समाज और संस्कृति Transformation से गुज़र रही है और Intermediate अवस्था में है। ये अवस्था सबसे ज्यादा अस्थायी होती है और इसमें deformation के chances ज्यादा होते हैं। ये जो cocktel है ना ये हमारी सांस्कृतिक परंपरा को खा रही है और हमको आभास भी ना हो रहा।
कुछ लोगों का मानना है कि 'Love u' बोलना आसान है मैं इस कथन से पूर्ण सहमत हूँ लेकिन उससे भी ज्यादा आसान है उसको एक पल में रिजेक्ट कर देना, विना हक़ीक़त को जाने। लेकिन उसके पीछे के छिपे पहलू को समझने की भी तो कोशिश करो एक बार।
ये बात सच है कि लोगों की धारणा ही बदल गयी है प्यार को लेकर, वो भौतिक सुख ( वासना) को ही प्यार मानकर जीवन में आगे बढ़ते हैं लेकिन क्या हर कोई ऐसा सोचता है? मेरा सवाल बस इतना है कि क्या दुनिया में कोई भी ऐसा नहीं है जो पप्यार के वास्तविक स्वरूप में विश्वास करता है? मेरा विश्वास है कि ऐसे अनगिनत लोग होंगे जो इसमें भरोसा रखते हैं इसका जीवन में आचरण करते हैं।
लेकिन उनको बाकी लोगों की तरह मानना कितना जायज़ है? भले ही वो minority हैं लेकिन सही मायनों में सच्चे प्रेम का हक़ तो उनको ही है।