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बचपन और पिटाई था बहुत शौक मीठा खाने का, यूँ न मिले

बचपन और पिटाई था बहुत शौक मीठा खाने का,
यूँ न मिले तो चुपके से खा लेने का,
हम कभी चोरी नहीं करते थे,
हम तो बस चुपके से थोड़ी लिया करते थे।
आ जाती जो माँ तो मुंह में ठूंस लेते,
माँ कुछ कहती चुपके खड़े रहते।
जब देर तक कोई जबाब नहीं आता ,
माँ का गुस्सा उबाल मारता,
बोलती क्या है मुंह में दिखा तो मुझे,
और जब मुंह खोलती तो मिलता कुछ न उन्हें,
निगल लेते मिठाई स्वाद आता ही नहीं,
चुपके से ली हुई मिठाई का मजा आता नहीं। #मिठाई
#बचपनकीयादें
#माँ
बचपन और पिटाई था बहुत शौक मीठा खाने का,
यूँ न मिले तो चुपके से खा लेने का,
हम कभी चोरी नहीं करते थे,
हम तो बस चुपके से थोड़ी लिया करते थे।
आ जाती जो माँ तो मुंह में ठूंस लेते,
माँ कुछ कहती चुपके खड़े रहते।
जब देर तक कोई जबाब नहीं आता ,
माँ का गुस्सा उबाल मारता,
बोलती क्या है मुंह में दिखा तो मुझे,
और जब मुंह खोलती तो मिलता कुछ न उन्हें,
निगल लेते मिठाई स्वाद आता ही नहीं,
चुपके से ली हुई मिठाई का मजा आता नहीं। #मिठाई
#बचपनकीयादें
#माँ