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बहुत देर तक बैठकर मैं सोचता रहा काश ये,काश वो के क

बहुत देर तक बैठकर मैं सोचता रहा
काश ये,काश वो के कशमकश मे था
हुई सुबह की जगाने लगी, अंगड़ाइयां
था ख़्वाब की हक़ीक़त से, पर्दा था गिरा
खैर,ज़िन्दगी मिली तो थी हर एक मोड़ पे
मैं ज़िन्दगी की तलाश मे यूँ ही भागता रहा
जैसे,मंज़िलों से परे भी कोई सफर बचा हुआ
जैसे,गम कोई दिल के आशियाने में सज़ा रखा
और,दिल रो रहा की दर्द मिटे,सुकून मिले कहीं
जब ले, आखरी साँस हम,ना रहे सिलसिले यही

©paras Dlonelystar
  सोचता रहा
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