कितना तबाह हुआ हूँ अन्दर से बता भी नहीं सकता सच तो छोडो... झूठ छुपा भी नहीं सकता.... ............... बेइंतहा रोया गैर मौजूदगी पे उसकी इन हादसों को.... अखबारी पन्नों पे छपा भी नहीं सकता..... ................. सच तो छोडो...... झूठ छुपा भी नहीं सकता ................... वक्त ने ज़ख्म दिया ही नहीं कुरेदा भी है अपनों के दिए जख्मो को सहला भी नहीं सकता.... ................ सच तो छोड़ो....... झूठ छुपा भी नहीं सकता ................... दिन मे वक्त होता ही नहीं कुछ कह सकूँ उनसे रात पराई है कुछ बता भी नहीं सकता...... .............. सच तो छोड़ो........ झूठ छुपा भी नहीं सकता..... .................. न जाने कितनो ने कहानी सुनी मेरी ये कहानी मेरी है हक जता भी नहीं सकता....... ............... सच तो छोडो....... झूठ छुपा भी नहीं सकता....... ............ नौमेश पाण्डेय ..................................