|| श्री हरि: ||
19 - चपल
कन्हाई इतना चपल है कि कुछ मत पूछो। यह कब, क्या कर बैठेगा, इसका कुछ ठिकाना नहीं है। हिचकना, डरना तो इसे जैसे आता ही नहीं है। जब जो जी में आया, करके ही रहेगा।
घर में मैया और रोहिणी माँ इसे सम्हालती हैं। गौष्ठ में चला जाय तो बाबा साथ लगे रहते हैं; किन्तु वन में आने पर तो यह स्वच्छन्द हो जाता है।
श्याम दाऊ दादा का संकोच न करता हो ऐसी बात नहीं है। संकोच तो यह अपने से बड़ी आयु के सखा विशाल, वरूथप, ऋषभ, अर्जुन आदि का ही नहीं, समवयस्क भद्र तक का करता है; किन्तु बालक बडे-बूढे गोप तो नहीं हैं कि बड़ों के समान सदा सतर्क रह सके।