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-*साथी*- सिरहाने से हटा ली उसने हाथ भी इस बार, मो

-*साथी*-
सिरहाने से हटा ली उसने हाथ भी इस बार, 
मोड़ लिया मुँह उसने जरा सी बात पे इस बार।

कर सके जो ना कमाई चार पैसे दिन के,
ये बात कहके छोड़ दी उसने साथ मेरा इस बार।

मन बुरा बनने लगा, कर्म बुरा करने लगा,
मारा किस्मत ने जब लात मुझे इस बार।

साया अच्छाई का जब बुरे लोगों पे पड़ता है,
फिर मौका दिया खुदा ने, खुद मुझे इस बार।

बनना हो तो बनो किसी के बुरे दिनों का साथी,
कहके मैंने छोड़ा, खुद उसे इस बार। #साथी #sathi #deepakivani #3rdtime #original 

होते होंगे न कुछ लोग ऐसे भी, फिलहाल ये कविता यूँही लिख दिया है।
-*साथी*-
सिरहाने से हटा ली उसने हाथ भी इस बार, 
मोड़ लिया मुँह उसने जरा सी बात पे इस बार।

कर सके जो ना कमाई चार पैसे दिन के,
ये बात कहके छोड़ दी उसने साथ मेरा इस बार।

मन बुरा बनने लगा, कर्म बुरा करने लगा,
मारा किस्मत ने जब लात मुझे इस बार।

साया अच्छाई का जब बुरे लोगों पे पड़ता है,
फिर मौका दिया खुदा ने, खुद मुझे इस बार।

बनना हो तो बनो किसी के बुरे दिनों का साथी,
कहके मैंने छोड़ा, खुद उसे इस बार। #साथी #sathi #deepakivani #3rdtime #original 

होते होंगे न कुछ लोग ऐसे भी, फिलहाल ये कविता यूँही लिख दिया है।