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वक़्त की बेरुखी कहूँ या अपनों की कुटिलाई "चाहत"

वक़्त की बेरुखी  कहूँ या अपनों की कुटिलाई 
"चाहत" में आज़ादी,  किसी को रास ना आई 

तड़पते रहे,"विरह-अग्नि" में  हरपल जलते रहे 
नसीब-ए-मोहब्बत में, मिलन की वेला ना आई 

तरसते रहे लब यूँही लबों पर तिश्नगी है छाई 
इश्क़ के हिस्से  सिर्फ़  "दर्द-ए-जुदाई" है आई 

ख़ुदा की  रहमत से 'इश्क़' मिलता है "कृष्णा"
ख़ुदा ने भी इश्क़ में "दर्द-ए-जुदाई" ही तो पाई ♥️ Challenge-626 #collabwithकोराकाग़ज़ 

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वक़्त की बेरुखी  कहूँ या अपनों की कुटिलाई 
"चाहत" में आज़ादी,  किसी को रास ना आई 

तड़पते रहे,"विरह-अग्नि" में  हरपल जलते रहे 
नसीब-ए-मोहब्बत में, मिलन की वेला ना आई 

तरसते रहे लब यूँही लबों पर तिश्नगी है छाई 
इश्क़ के हिस्से  सिर्फ़  "दर्द-ए-जुदाई" है आई 

ख़ुदा की  रहमत से 'इश्क़' मिलता है "कृष्णा"
ख़ुदा ने भी इश्क़ में "दर्द-ए-जुदाई" ही तो पाई ♥️ Challenge-626 #collabwithकोराकाग़ज़ 

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krishvj9297

Krish Vj

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