चला में भी आज इन मोहब्बतों कि दुनिया से रूबरू होने । बचपन से सुनते आया हूं , किस्से - कहानी सोचा क्यों न आज मैं भी रूबरू हो आऊँ । पर हमें कहाँ पता था , जिन्हें हम मोहब्बत का नाम दे रहे थे वो महज बस एक आकर्षण भरि मोहब्बत का छलावा था । सच्ची मोहब्बत तो कहिं दूर अपनी प्यारी सी बाहें फैलाकर हमें कब से पुकार कर कह रही हैं आओ कहि खो जाएं इन नशीली प्यार भरी बाहों के थपकी में जहां न फ़रेब होगा न ये दिखावटी मोहब्बत बस हम और तुम - बस हम और तुम ! 😊😊 Understanding true love😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊😊