............और एक दिन उन्हें अपने साथ होने वाली नाइंसाफियों का भान होता है। (पूरा कैप्शन में) ............और एक दिन उन्हें अपने साथ होने वाली नाइंसाफियों का भान होता है। जिन लोगों को भद्र जनों ने गुंडा मवाली बनकर जीने को मजबूर किया था, उन्हें लगता है कि शासन सत्ता तो हमारी है। उन्हीं भद्र जनों ने उनकी गुंडई के दम पर अपनी कमीज़ साफ़ रखी हुई थी। यही लोग कैमरे के सामने "औरतें देवी हैं" कहकर उन्हें "दुर्दांत" हो जाने के मशवरे देते थे। आखिर कब तक वे दोतरफा संवाद में पड़कर अपनी इमेज ख़राब करते? कब तक वे सिर्फ घर की औरतें पर धौंस जमाते, सड़क पर जाती औरतों को परेशान करते रहते? उनकी योग्यता क्यों केवल गली मोहल्लों तक सीमित रहती? आखिरकार उनके चचा लोग तो पिछली पीढ़ी से ही अपना परचम मायानगरी में फहरा चुके थे। और वे आज के मॉर्डन लौंडे थे। वे जानते थे कि केवल लोकल पॉलिटिक्स में नहीं खपना है। खाली पर्दे पर ही जलवा नहीं बिखेरना है। इस अनाचार का बदला लेने वे पहुंच गए दिल्ली। जनपथ पर खड़ी जर्जर इमारत भी उनके ही इंतजार में अब तक सही सलामत खड़ी थी ताकि उनके करन अर्जुन आएं और उसे राजौरी तक पहुंचा दें।......... #VocalForLocal #Nepotism #UrbanRuralDivide #गुंडागर्दी #सभ्यता #राजनीति #मासूम