एक नदि थी बह रही, उछलती,मचलती, धरती माँ की प्यारी राज-दुलारी, खेत-खलिहान को थी सींचती, एक नदि थी बह रही, सब कहते थें उसे स्रोत जीवन का, वो थी माँ गंगा, सबसे बड़ा स्रोत थी जो कृषक के मेहनत का, वो जीवन थी इस धरातल का, आज भी वो है बहती, पर कहीं ज़िन्दा कहीं मुर्दा है बहती, और हमसे ये है कहती, मैंने दिया तुमको जीवन और तुमनें मुझे बनाया एक चिता जलती, हमारे लिए जिस गंगा नें जीवन का द्वार था खोला, उस गंगा को पुनर्जीवित करनें का आज भी है पास हमारे मौका, बस अब इसे हम प्रदूषित न करें, और इसकी स्वच्छता में सबका साथ दें, आज वो नदि भी यही है चाह रही, एक नदि थी बह रही, उछलती-मचलती, धरती माँ की प्यारी,राज-दुलारी, खेत-खलिहान को थी सींचती, एक नदि थी बह रही #कविमनीष #NojotoQuote #कविमनीष