कैसे मैं तेरी भक्ति करूँ, कैसे मैं अपनी प्रीत लिखूँ? हे महाकाल हूँ सेवक तेरा,कैसे मैं तेरे गीत लिखूँ ? कैसे मैं तेरी भक्ति करूँ, कैसे मैं अपनी प्रीत लिखूँ? हे महाकाल हूँ सेवक तेरा,कैसे कोई मैं गीत लिखूँ ? न शब्दों का मैं जादूगर कोई, न छन्दों का ही है ज्ञान मुझे। मैं तेरा अनुचर हूँ प्रभु बस,इतना ही है अभिमान मुझे। न सामर्थ्यपूर्ण है शब्दकोश मेरा,जो तुमको मैं वर्णन कर पाऊँ। मैं खुद ही हूँ अस्तित्वहीन 'शून्य',बस कोशिश है शब्दपुष्प ही अर्पित कर पाऊँ।