सावन मास भिजेला मोरा साड़ी बलम बा अनाड़ी ए हरि । बलम बा अनाड़ी ए हरि -२ देहिया भइल जात बाटे अब भारी बलम बा अनाड़ी ए हरि ।। पिपरा के पतिया प चिठ्ठिया लिखवनी रामा अपना बलम जी के घरवा बोलवनी रामा पतिया बांचतs दिहले ओहके फारी बलम बा अनाड़ी ए हरि।/३ सावन मास भिजेला मोरा साड़ी बलम बा अनाड़ी ए हरि।।१।। ताना मारे ननदी गोतीनिया के बानी रामा देखीं रउआ धई लिहीं गाड़ी राजधानी रामा आमा जी दे ली हs फजीरे दुगो गारी बलम बा अनाड़ी ए हरि।/३ सावन मास भिजेला मोरा साड़ी बलम बा अनाड़ी ए हरि।।२।। सरगम शैलेन्दर काहें निर्मोही भइल रामा कवनो सवतिया प लागता लोभइल रामा आव ना त परती रही खेती बारी बलम बा अनाड़ी ए हरि।/३ सावन मास भिजेला मोरा साड़ी बलम बा अनाड़ी ए हरि।।३।। शैलेंद्र सरगम ©Dr.Shailendra sargam #गीत