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मैं भी शामिल था तेरे मुहब्बत के तलबगारों में ना



मैं भी शामिल था 
तेरे मुहब्बत के तलबगारों में
नाम मेरा भी लिखा 
जाना चाहिए गुनहगारों में
सर मुहब्बत के गुलाबों का
 कोई क़लम कर पाएं
इतनी ताक़त नहीं है 
नफरत भरी तलवारों में
एक दरवेश की
 जिस दिन से हुई है यहां आमद
हर तरफ खलबली  
मची है शह्र के ज़रदारों में
मेरे हर लफ़्ज़ में 
बस जाती है ख़ुशबू ख़ुशबू 
ज़िक्र जब भी तेरा
 करता  हूं मैं अपने अशआरों में
आज दुनिया के 
खुदाओं से "अनुपम" पूछता है
हुस्न क्या अब भी 
चुना जाएगा दीवारों में।

©"ANUPAM"
  #हुस्न_के_दीवाने