ख़त वाला प्यार (अनुशीर्षक में पढ़ें) दरवाजे की घंटी बजी, दरवाजा खोला तो देखा कि सामने डाकिया खड़ा है ,हर बार की तरह वैसा ही ख़त लिए। उससे वो ख़त लेकर कमरे की मेज़ पर रख दिया मैंने। ख़त का ढ़ेर सा लगा है मेरी मेज़ पर, आज तक किसी भी ख़त का जवाब नहीं दिया है, जाने क्यूं वो फिर भी ख़त लिखता है। बात करीब सालभर पहले की है, शहर की लाइब्रेरी में पहली मुलाकात हुई थी उससे। एक सीधा सादा किताबों से मोहब्बत करने वाला लड़का है वो।