स्कूल के रास्ते में एक छोटी सी गुफ़ा थी मैंढक के मुहँ सरीखी और उस गुफ़ा में हवा हमेशा ठंडी रहती थी स्कूल आते जाते बच्चे, अक्सर उसमें मुँह डाल कर ठंडक सोखा करते थे जेठ का मौसम तो ठीक था, मगर सावन के पेशतर भी ये सिलसिला जारी रहता और पाले से ज़मी नवंबर की सुबह भी अक्सर बच्चे उस गुफ़ा में मुहँ पिरोए मिल जाते इस बार लौटा तो सोच की बुझा जाए कि उस गुफ़ा में क्या गूढ़ छिपा है मेरी उम्र पक चुकी कलमें सुफै़द हैं और चेहरे पर झुर्रियाँ तो शायद समझ सकूँ कि माज़रा क्या है गुफ़ा में चेहरा डाला तो ना जाने, ठंड सीने में क्यूँ लगी मिट्टी की मुकद्दस खुशबु रूह तक उतरती चली गई साँसों में इफरात घुल गई रगों में सुकून जब चेहरे बाहर निकल मेरा मज़मून बदल चुका था आज भी मैं बरसाती उतर कर भीगना चाहता हूँ आज भी मैं तपती रोड़ पर पिघलते कोलतार में जूता चिपकाना चाहता हूँ उम्र की भी कई तहें होती हैं सुकूँ का शहर 3. मैंढक का मुहँ #kavishala #hindinama #tassavuf #skand #nainital #sem #sonn #allc #sherwoodcollege #stjosephsnainital #DSB #kiran #सुकून_का_शहर #sukoon_ka_shahar