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्््शीषर्क ््् ्््झिलमिलाते वो आंसू ्् ््् जिस पल क

्््शीषर्क ्््
्््झिलमिलाते वो आंसू ््
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जिस पल के ख्वाब में,ख्याल में रचते पचते है।
हम डूबते है उन अनसूलझे अनकहे लफ्ज़ से।
इन आंखों में हर पल ््झिलमिलातेवोआंसू ,
अपनी जूबानी वो खूद बखूद चेहरे पर बदलते वो अपने ख्याल रखना।
वो लफ्जो से चेहरे पर वो सवाल,मै
जो किसी गम की तन्हाइयों में मशरूख था।
ना मालूम वो अपनो की नजरो से क्यूं खफा था,
मगर मैं वो दास्तां मैं क्या कहूं,
जो अपनो के ज़ख्मों से घायल था।
वो खूबसूरती हम क्या बयां करते,
जो खामोशी में ढलकते है वो आंसू।
हम तो निकले अपना आशियाना संजाने,
मगर वो मिले हमें मेरी क़ब़ पे फूलोकोसंजाने में 
वो महज इत्तेफाक मेरा जो मेरे जनाजे के करीब था।

वो आयना किसी खूबसूरत चेहरे का नूर नूर था,
जो मेरे अपनो से दूर ना था,
वो मेरी अपनी रूह मे समां गया कतरा जो वक्त का आशियाना महफूज हों।

जो तेरा दिवाना जो रब की जूबानी सच में डुबा ईमान का दिवाना।
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कवि शैलेंद्र आनंद
30 अप्रैल 2023

©Shailendra Anand
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