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।।वैसे तो ......वो मान जाया करती है।। ।।वैसे तो...

।।वैसे तो ......वो मान जाया करती है।। ।।वैसे तो....वो मान जाया करती हैं।। *।।वैसे तो ... वो मान जाया करती है।।* 

("वैसे तो" सिर्फ एक ऐहसास हैं जिसे *कवि अनुराग चौरसिया "रतलामी"* ने शब्दो मे बांधने की कोशिश की है।ये सिर्फ वही महसूस कर सकता जिसने कभी किसी से मोहब्बत की हो....)


वैसे तो मैं चाँद तारो को तोड़कर लाऊ ये चाहत नहीं है उसकी,
वो तो मेरे साथ बस पानीपुरी खाकर भी मान जाया करती हैं,
।।वैसे तो ......वो मान जाया करती है।। ।।वैसे तो....वो मान जाया करती हैं।। *।।वैसे तो ... वो मान जाया करती है।।* 

("वैसे तो" सिर्फ एक ऐहसास हैं जिसे *कवि अनुराग चौरसिया "रतलामी"* ने शब्दो मे बांधने की कोशिश की है।ये सिर्फ वही महसूस कर सकता जिसने कभी किसी से मोहब्बत की हो....)


वैसे तो मैं चाँद तारो को तोड़कर लाऊ ये चाहत नहीं है उसकी,
वो तो मेरे साथ बस पानीपुरी खाकर भी मान जाया करती हैं,