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आदमी बुलबुला है पानी का और पानी की बहती सतह पर टूट

आदमी बुलबुला है पानी का
और पानी की बहती सतह पर टूटता भी है, डूबता भी है,
फिर उभरता है, फिर से बहता है,
न समंदर निगला सका इसको, न तवारीख़ तोड़ पाई है,
वक्त की मौज पर सदा बहता आदमी बुलबुला है पानी का।

©life story
  #गुलज़ार साहब
rinki3528698386076

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