मै हज़ारों मर्तबा बस आपको सुनना चाही थी ना आपसे कम ना आपसे ज्यादा की तमन्ना थी आप छुपी कैसे रह गई अबतक मेरी नज़रों से की तलाश थी आपकी मुझे कितने ही बर्षों से जो अन्तर्मन को भेदकर मेरी रूह में उतर आये एक ऐसी ही आवाज़ की मुझे आजतक तमन्ना थी । मै हज़ारों मर्तबा बस आपको सुनना चाही थी ना आपसे कम ना आपसे ज्यादा की तमन्ना थी आप छुपी कैसे रह गई अबतक मेरी नज़रों से की तलाश थी आपकी