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प्यासे भूतल को निरख परख , बिन बरसे बदली

प्यासे भूतल को निरख परख ,            बिन बरसे बदली चली गई।।                                                                      हम लाख मनाते रहे मगर,                    घर छोड़कर पगली चली गई।।                    देहरी से रंगोली रूठी,                     आंगन की तुलसी भी सूखी ।                       औरों की कटती है पतंग,                 अपनी तो तकली चली गई।।                 जब पायल की झंकार गई,                सरगम की ढफली चली गई।। #बिन बरसे
प्यासे भूतल को निरख परख ,            बिन बरसे बदली चली गई।।                                                                      हम लाख मनाते रहे मगर,                    घर छोड़कर पगली चली गई।।                    देहरी से रंगोली रूठी,                     आंगन की तुलसी भी सूखी ।                       औरों की कटती है पतंग,                 अपनी तो तकली चली गई।।                 जब पायल की झंकार गई,                सरगम की ढफली चली गई।। #बिन बरसे