प्यासे भूतल को निरख परख , बिन बरसे बदली चली गई।। हम लाख मनाते रहे मगर, घर छोड़कर पगली चली गई।। देहरी से रंगोली रूठी, आंगन की तुलसी भी सूखी । औरों की कटती है पतंग, अपनी तो तकली चली गई।। जब पायल की झंकार गई, सरगम की ढफली चली गई।। #बिन बरसे