जो प्राणों में बसा हों.... कहा, लिखो किसी बारे में, जो तुम्हारे प्राणों में बसा हो, तुम जिसकी ज़िन्दगी हो चुके हो, मैं कुछ पल ठहरा, किया हर रिश्ते का चित्रण, हर एक दोस्त, प्यार के एहसास, को इस सवाल से खंगाला, फिर रूठा खुद से, खुद से नाराज़ हुआ, गुजार दी यूँ ही ज़िन्दगी, कोशिशें तो इसी इरादें से हुई थीं, अंधकारमय हो रहा था जीवन, खुद गुमनाम हो रहा था, अकस्मात, एक प्रकाशमय ख़याल आया, मानो कोई कवि, किसी अंधेरे से मकान में, सिर्फ एक प्रकाश की किरण, जो सीधे उसकी कलम की नोंक पे, मानो वो उसी प्रकाश को, शब्दो में लिख रहा हो, तस्वीर उभरी, ज़वाब आया, फोन मे थी, जो माँ-पिता की तस्वीर, उसी से था ये पैगाम आया, ऐसा एहसास, कितनी बार, कितनो के लिए, था नज़र अंदाज़ किया, जिन्होंने उम्र गुजार दी मेरे ख़याल में, जो मिल नहीं सकता किसी जहां में, यही एहसास, कलाम बनकर आया, वजह मिली खुश होने की, जैसे कोई जीवनदान मिला, जो हैं खुद, अर्थ ज़ीवन का, अब लिखता भी क्या, क्या सजदा करता, लिखी उनकी सलामती, उनका साथ लिखा, यू, खुद को सलामत रखने की, एक खूबशूरत वजह लिख बैठा, एक आम सा खयाल, जो कमाल कर बैठा.....। - "अश्मित" ©ASHISH PANDEY #stopsuicide #parentallove #life #माता_पिता #ज़िन्दगी