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पगली सी मैं, सयाना सा तू अच्छा लगता है। झल्ली सी

पगली सी  मैं, सयाना सा तू अच्छा लगता है। झल्ली सी मैं ,और समझाता हुआ तू अच्छा लगता है ।नादान सी मैं ,बतलाता हुआ तू अच्छा लगता है ।कभी मासूम सी कभी सहमी सी  मैं ,और हंसाता हुआ तू अच्छा लगता है ।मैं दिनभर बेतुकी बातें करती , और सुनता हुआ तू अच्छा लगता है ।जब मैं डरती हूं एहसानों से झूठे बहानों से बेमतलब के तानों से, मेरा हौसला बढ़ाता हुआ तू अच्छा लगता है ।जब मैं खामोश रहती हूं ,किसी से कुछ ना कहती हूं, सब अकेले ही सहती हूं, और मुझे समझाता हुआ तू अच्छा  लगता है ।शैतान सी मैं बदमाशियां करने वाली, प्यार से डांटता हुआ तू अच्छा लगता है। बावरी सी मैं, और शांत सा तूं अच्छा लगता है। अच्छा लगता है...
पगली सी  मैं, सयाना सा तू अच्छा लगता है। झल्ली सी मैं ,और समझाता हुआ तू अच्छा लगता है ।नादान सी मैं ,बतलाता हुआ तू अच्छा लगता है ।कभी मासूम सी कभी सहमी सी  मैं ,और हंसाता हुआ तू अच्छा लगता है ।मैं दिनभर बेतुकी बातें करती , और सुनता हुआ तू अच्छा लगता है ।जब मैं डरती हूं एहसानों से झूठे बहानों से बेमतलब के तानों से, मेरा हौसला बढ़ाता हुआ तू अच्छा लगता है ।जब मैं खामोश रहती हूं ,किसी से कुछ ना कहती हूं, सब अकेले ही सहती हूं, और मुझे समझाता हुआ तू अच्छा  लगता है ।शैतान सी मैं बदमाशियां करने वाली, प्यार से डांटता हुआ तू अच्छा लगता है। बावरी सी मैं, और शांत सा तूं अच्छा लगता है। अच्छा लगता है...