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जो अब एक उलझनों के शहर में ज़िंदगी बितायी है मैंने

 जो अब एक उलझनों के शहर में ज़िंदगी बितायी है मैंने
अब ज़िंदगी थोड़ी अँधेरी है तो क्या बुरा है?

अब तक चोट के नाम पर बस थोड़ी खरोंच आयी थी मुझे
जो अब चोट आई थोड़ी गहरी है तो क्या बुरा है?

वैसे इलज़ाम तो लगा दिए मैंने किस्मत के सोने पर
सवाल भी उठा दिए भगवान के होने पर
 जो अब एक उलझनों के शहर में ज़िंदगी बितायी है मैंने
अब ज़िंदगी थोड़ी अँधेरी है तो क्या बुरा है?

अब तक चोट के नाम पर बस थोड़ी खरोंच आयी थी मुझे
जो अब चोट आई थोड़ी गहरी है तो क्या बुरा है?

वैसे इलज़ाम तो लगा दिए मैंने किस्मत के सोने पर
सवाल भी उठा दिए भगवान के होने पर