दिसम्बर की रात जैसे-जैसे गहरा रही थी...अकेलापन उतनी ही तेज़ी से शहर से ,हर मौहल्ले ,हर गली ,हर घर मे .......रिस रही था। इक धीमी गुरुर से भरी लावा की नदी की तरह , जैसे बाढ़ का पानी चढ़ते-उतरते दीवारो पर निशान छोड़ जाती है ना वैसे ही किसी भी शहर में हर सुबह आप घरो को देखकर ये अंदाजा लगा सकते है कि पिछली रात यंहा अकेलापन आया था । #दिसम्बर_की_रात #दिसम्बर_की_सर्द_हवा #दिसम्बर_विश्लेषण #अकेलापन_और_तन्हाई #कलबोरेटिंग rj rehan roy