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हमने किसी से दोस्ती का सिलसिला किया। बसकर ज़िगर में

हमने किसी से दोस्ती का सिलसिला किया।
बसकर ज़िगर में उसने दिल को खोखला किया।।

भरकर गुबार दिल में की अपनों से दुश्मनी।
दिल में भरे मलाल ने किसका भला किया।।

सच की गवाही देते-देते थक गए थे हम।
झूठी गवाही ने ही दफ़ा मामला किया।।

दो जिस्म, जान एक, एक सोच थी मगर।
न जाने किसने दरमियां ये फासला किया।।

खुद से हमारी दुश्मनी खुद से मलाल है।
अपने वजूद से ही तो हमने गिला किया।।

कितने परास्त हो गए तब हम बने विजय।
कायम सभी से हमने फिर ये फासला किया।।

©Vijay Besharm
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