रात सामने रखकर देखो कितना घना अंधेरा था चांद अलोना बैठा उन्मन उसने यों मुंह फेरा था ऐसे बिफर गया था कुछ वो दोष कहो क्या मेरा था दृष्टि हुई क्षतिग्रस्त, कहो! किसने दृश्य उकेरा था मुरझाए थे फूल बोल के सन्नाटों का डेरा था रहा बिलखता मौन कंठ में स्नेहाहत मन मेरा था बासंती नैनों में ऊसर बिंबित वसुमन मेरा था झूमा करता था बसंत जिन कोमल मधुपाशों में शुष्क वायु प्रण प्राण सोखती भय सी भरती श्वांसो में स्पंदन में सिहरन! खालीपन! किन ऋतुओं का फेरा था भीगे थे कपोल चांद के भीगा आंचल मेरा था #toyou #yqmoon #yqlove #yqdesertion #yqnights #yqspring