सोचता हूँ मैं बरगद बन जाऊं उम्र भर फिर ये रिश्ता निभाऊं बीत जाए सदियाँ धरती पर कितनी मैं बदलते सारे वक्त देख पाऊँ जब गुजर जाए ज़माना यहां आने वाली पुश्तों के घर बनाऊं मेरी ऐंठी हुई लकड़ियों से सबके बन पलंग उन्हें सुलाऊँ आने वाली नस्लें से सुनकर नाम मैं खुद ही खुद पर इतराऊँ शुभम पांडेय गगन ©Shubham Pandey gagan सोचता हूँ मैं बरगद बन जाऊं उम्र भर फिर ये रिश्ता निभाऊं बीत जाए सदियाँ धरती पर कितनी मैं बदलते सारे वक्त देख पाऊँ जब गुजर जाए ज़माना यहां आने वाली पुश्तों के घर बनाऊं मेरी ऐंठी हुई लकड़ियों से सबके बन पलंग उन्हें सुलाऊँ