उलझने बड़ी शिद्दतो के साथ गुजर रही है उनमें ठहरकर अब एक शेर लिखता हूं । खुष्क होगया है लहू मेरा अरसे से अपने ही शरीर पर अब दर्द की लहर लिखता हूं । हमे दोबारा इश्क़ से ताल्लुक रखना था पर पूराने इश्क़ से ..में ज़माने में कहर लिखता हूं । मेरी हसरतें इतना दौड़ाती है मुझे की जब भटक जाऊ तोह मंज़िल के बदले में अपना शहर लिखता हूं । यह दिल सेहेम गया है इस मसनुई लहज़े से अपनी राहत के लिए में शाम को दोपहर लिखता हूं । गिरकर जो उठता हूं कुछ लोग जलते बहुत है इसकी वजह से .. में खुदको महर लिखता हूं । कलम की स्याही बेह रही बहुत है जज्बातों पर लफ्जो से में गजल का अब आखरी बहर लिखता हूं । ~आगम #aagambamb #SilentWaves