#OpenPoetry करीन तरीके साजे है। इधर भी बाजे हैं कमजोर नहीं सहजोर इलाका द्विवधा मन राखे हैं। कृष्ण की राधा रुकमणी श्रृंगार में थोड़ी मोहलत देते इलाका कमजोर इधर भी नहीं नयन की बारी न है। बारी तो मन की है। कभी हंसे तो रोए भी छल समझूं या मजबूरी कब समझूं देते मोहलत थोड़ी खातिर तेरे तारा तीर तीर किया बदले में तुमने क्या दिया? चली जाएगी या रोक लूं मिर्ची अपनी आंखों में क्या झोक लूं? कह सकता मैं यह व्यथा किसे सुनाऊं जाकर मैं अपनी यह कथा? #OpenPoetry