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यह हर दफ्तर का हिस्सा है बस नौ से पांच का क़िस्सा

यह हर दफ्तर का हिस्सा है 
बस नौ से पांच का क़िस्सा है।



 यह हर दफ्तर का हिस्सा है 
बस नौ से पांच का क़िस्सा है।

जो दफ्तर में अकड़े अकड़े से हैं 
वो अपनी ही कुंठा में जकड़े से हैं।

कुछ मकरंद सूंघते "भंवरे" हैं 
हर फूल फूल पर "ठहरे"  हैं।
यह हर दफ्तर का हिस्सा है 
बस नौ से पांच का क़िस्सा है।



 यह हर दफ्तर का हिस्सा है 
बस नौ से पांच का क़िस्सा है।

जो दफ्तर में अकड़े अकड़े से हैं 
वो अपनी ही कुंठा में जकड़े से हैं।

कुछ मकरंद सूंघते "भंवरे" हैं 
हर फूल फूल पर "ठहरे"  हैं।