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मिर्ज़ा ग़ालिब साहब ग़ज़ल की ज़मीन पे चंद‌ अश्आर

मिर्ज़ा ग़ालिब साहब ग़ज़ल की ज़मीन 
पे चंद‌ अश्आर


चिट्ठी में कबूतर में नहीं तार में आवे
हमको मज़ा तो यार के दीदार में आवे। (१)

हम हसरतों की कब्र को खुल्ला ही रखे हैं,
शायद कभी तो शौक मेरा यार में आवे। (२)

गुस्ताख तेरी नज़रें हैं हमको भी पता ये
बस ढूंढती रहती मुझे जब प्यार में आवे। (३)

©Sanjiv Nigam #दीदार_ए_यार
मिर्ज़ा ग़ालिब साहब ग़ज़ल की ज़मीन 
पे चंद‌ अश्आर


चिट्ठी में कबूतर में नहीं तार में आवे
हमको मज़ा तो यार के दीदार में आवे। (१)

हम हसरतों की कब्र को खुल्ला ही रखे हैं,
शायद कभी तो शौक मेरा यार में आवे। (२)

गुस्ताख तेरी नज़रें हैं हमको भी पता ये
बस ढूंढती रहती मुझे जब प्यार में आवे। (३)

©Sanjiv Nigam #दीदार_ए_यार