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धुनें गाई बहुत लेकिन, न ऐसा राग आया है पिता बन कर

धुनें गाई बहुत लेकिन, न ऐसा राग आया है

पिता बन कर, फिर ह्रदय में आज ये अनुराग आया है।।

फुहारें आँखों से गिरकर, जमीने बागबाँ हो गई

अँधेरा छाँटने वाला वो 'घर का चराग़' आया है।।


पहले बलदाऊ आये थे, अब कान्हा रास आया है

मेरी छोटी सी बगिया में प्रभु का वास आया है।।

पिता बनना की जैसे आसमा को हाँथ में भरना

पिता बनकर फिर लौटा बचपन का एहसास आया है।।

।। सहज ।।

©Sarvesh Sharma Sahaj
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