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बिसात जब शतरंज की बिछी थी असल चेहरे देख आँखे पसिज

बिसात जब शतरंज की बिछी थी 
असल चेहरे देख आँखे पसिजी थी
तब हमने ये ग़ज़ल लिखी थी।

अपनों ने जब तलवारें खिची थी 
न जाने कैसी चाहत उनमें छिपी थी
तब हमने ये ग़ज़ल लिखी थी।

लोगो ने फसल जहर से सींची थी
जख्म लगा सबने आँखे भींची थी
तब हमने ये ग़ज़ल लिखी थी।

कलम ने लिखी जो खुद पे बीती थी 
नज़र नहीं नजरिये ने दूरियां खींची थी 
तब हमने ये ग़ज़ल लिखी थी।  #paidstory #रविकीर्ति_की_कलम_से #रविकीर्ति_झलकियाँ #ravikirtikikalamse #shataranjkibisaat #ravikirti_shayari #ravikirti_poetry #dard_hoga
बिसात जब शतरंज की बिछी थी 
असल चेहरे देख आँखे पसिजी थी
तब हमने ये ग़ज़ल लिखी थी।

अपनों ने जब तलवारें खिची थी 
न जाने कैसी चाहत उनमें छिपी थी
तब हमने ये ग़ज़ल लिखी थी।

लोगो ने फसल जहर से सींची थी
जख्म लगा सबने आँखे भींची थी
तब हमने ये ग़ज़ल लिखी थी।

कलम ने लिखी जो खुद पे बीती थी 
नज़र नहीं नजरिये ने दूरियां खींची थी 
तब हमने ये ग़ज़ल लिखी थी।  #paidstory #रविकीर्ति_की_कलम_से #रविकीर्ति_झलकियाँ #ravikirtikikalamse #shataranjkibisaat #ravikirti_shayari #ravikirti_poetry #dard_hoga