देने को बहुत कुछ है, पर मैं अपना सा कुछ देना चाहती हूँ, तेरे दिल को दे जाये सुकूँ, मैं बस ऐसा कुछ देना चाहती हूँ। हाँ-हाँ हो गई उधारी भी बहुत, इश्क़ का हिसाब अभी बाकी, तेरे लबों पर ले आये हँसी, मैं बस ऐसा कुछ देना चाहती हूँ। बातें भी बहुत हैं, यादें भी बहुत हैं, वक़्त बस ठहरता नहीं है, तेरे तन्हा लम्हे पाये बहार, मैं बस ऐसा कुछ देना चाहती हूँ। इंतज़ार के साथ रहेंगे गिले-शिकवे भी अक़्सर दरम्याँ हमारे, तेरे रूठे दिल को ले मना, मैं बस ऐसा कुछ देना चाहती हूँ। कोई नायाब तोहफ़ा देगा 'धुन', कोई छोड़ेगा ना कमी देने में, तेरे हाथों से छूटे न छूटे जो, मैं बस ऐसा कुछ देना चाहती हूँ। रमज़ान 15वाँ दिन #रमज़ान_कोराकाग़ज़