अपने जब पराये हो जाते हैं, क्या लिखूँ, किस तरह ज़ाहिर करूँ. चंद अल्फ़ाज़ चंद लम्हें बयाँ भी तो नहीं कर सकते की रूह के कितने करीब होते हैं अपने, हर पल के किस्सों में जुड़े होते हैं अपने, बात जब बेख्याली की हो, या हो खुशियों के बहार की, उन सारे किस्सों की नींव होते हैं अपने.. आज लिखने तो बैठा हूँ मैं, कुछ ऐसे हक़ीक़त के फ़लसफ़ा के बारे में.. पर मानो उंगलियां थम सी गई हैं, जिस ज़ीवन के आधारशिला को मज़बूती देता हैं परिवार.. आज इसी मज़बूती को तार तार कर गए हैं अपने. आज सिर्फ़ मतलब छुपा हैं हर रिश्तों में, मतलब की दुनिया में रम गए हैं अपने, रिश्तों की डोरी जिस अपने पन और प्रेम से पिरो कर सजा करती थी. आज ढूँढा करते हैं एक बहाना सारे, दूर चले जाने को अपने. आज नहीं हैं वो कंधे, जिनपर सर रख कर रोया जाए. नहीं है वो गोदी जिसपर सुकून भारी नींद आए. नहीं रहे वो साथी, जिनके साथ वक़्त के उन लम्हों को बांटा जाए, जिन लम्हो में हम आज भी अकेले हैं.. काश, लौट आए वो पुराने दौर, जिनमें अपने और परायों की पहचान तक नही हो पाती थी.. काश.......... #paraye