मैं रोज कुछ बातें लिख सकती हूँ कुछ गुस्से में, कुछ बेचैनी में कुछ अफ़सोस में, तो कुछ बेचारगी में कभी हताश हो कर तो कभी यूँ ही बेवजह कुछ शब्द इधर उधर करके अपनी आस पास की बातों को या सुदूर कल्पनाओं से खेल कर मैं कुछ लिख सकती हूँ, कह सकती हूँ ये लिख सकना, कह सकना मुझे कवि नहीं बनाता क्योंकि कवितायें हर रोज़ नहीं लिखीं जा सकतीं और जो मैं लिखती हूँ वो कवितायें तो हरगिज़ नहीं हैं वो तो महज़ दस्तावेज़ हैं मेरे जिंदा होने की #YQbaba #YQdidi #यूँही #कुछ_भी_नहीं