#OpenPoetry कश्मीर था नासूर सत्तर सालों का,भारत माँ के मस्तक पर। घाव बहुत ही गहरा था,भारत माँ के मस्तक पर। बाग,क्यारियाँ तड़प रहे थे,आजादी के राहों पर। गद्दारों का पहरा था,देश की कोमल छाती पर। कुत्ते भौंक रहे थे,लोमड़ियाँ गुर्राती थी। माँ भारती दिन प्रतिदिन,उम्मीदों को खोती थीं। इस निद्रा के कारण हमने,लाखों लाल गवाएं हैं। जब-2पीड़ा हुई भारत को,हमने लाल बिछाये हैं, भारत माँ इस पीड़ा से,जाग उठा एक लाल यहां कर तांडव नाश कर रहा,नाच-2 कर यहां वहाँ। ध्वस्त कर दी'तीन सौ सत्तर',मंसूबो पर पानी फेर दिया। ले गांडीव 'पैंतीस ए'को छिन्न-भिन्न कर फेंक दिया। मिटा दिया नासूर भारत के सर से,बच्चा-2 हर्षाया है। "जय हिंद, जय भारत "की गूंज से विश्व भी मुस्काया है। #कश्मीर