मैं हिंदी हूँ।। मैं हिन्द की ज़ुबान हूँ, मैं ही गती मैं प्राण हूँ, मैं संस्कृति का बोध हूँ, मैं ही अभेद्य त्राण हूँ। मैं शर तिमिर को भेदती, मैं गीता सार वेद सी, समर में शंख की ध्वनि, मैं ही अचूक बाण हूँ। मैं ही गरीब पेट हूँ, मैं हो तो धन्ना सेठ हूँ, हुंकार भी पुकार भी, मैं ही स्वतंत्र गान हूँ। लिए पताका चल रहा, जो खाली पांव जल रहा, पताके पे जो छप रहा, मैं ही विरोध भान हूँ। हूँ कृष्ण का अवतार में, हूँ राम जग को तार मैं, पूजा हवन ये गोष्ठी, मैं ही ज्वलन्त ज्ञान हूँ। हूँ निर्बलों का स्वर भी मैं, निशाचरों का डर भी मैं, मैं सप्त-अश्व सूर्य का, प्रखर प्रकाशमान हूँ। मैं ही दधीचि अस्थियां, मिटती असुर ये बस्तियां, प्रहार हूँ मै वज्र सा, मैं ही सुगम सुजान हूँ। हूँ भेद बंध तोड़ता, मनुज मनुज को जोड़ता, अंतहीन और अनन्त, मैं क्षितिज समान हूँ। मैं हिन्द की ज़ुबान हूँ, मैं ही गती मैं प्राण हूँ, मैं संस्कृति का बोध हूँ, मैं ही अभेद्य त्राण हूँ। ©रजनीश "स्वछंद" मैं हिंदी हूँ।। मैं हिन्द की ज़ुबान हूँ, मैं ही गती मैं प्राण हूँ, मैं संस्कृति का बोध हूँ, मैं ही अभेद्य त्राण हूँ। मैं शर तिमिर को भेदती,