अपनों के संग सोचते थे किसी वक्त, फुर्सत मिल जाए काम से कमबख्त, खाएंगे मीठा और उड़ाएंगे पतंग, कुछ नई यादें बनाएंगे अपनों के संग । रोज कुछ नया सीखेंगे, कुछ नया सिखाएंगे, हो गए थे कभी काम से तंग, मिला है कुछ वक्त बिताने को अपनों के संग । रात देर तक जागते थे, सुबह काम पर जल्दी भागते थे, थी कभी चैन और सुकून भंग, अब अपनी भी नींद पूरी करें अपनों के संग । कभी पराठे खाते थे, कभी खाना आधा छोड़ जाते थे, अब तो स्वादिष्ट लगता है चावल और रसम क्योंकि वक्त गुजर रहा है अपनों के संग । लॉक डाउन तो बहाना है, वक्त परिवार के साथ बिताना है, यह सोचकर लड़े कोरोना से जंग, निश्चिंत रहे घर पर अपनों के संग । #Apon_ke_sang #poetry