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अपनों के संग सोचते थे किसी वक्त, फुर्सत मिल जाए

अपनों के संग 

सोचते थे किसी वक्त,
फुर्सत मिल जाए काम से कमबख्त,
खाएंगे मीठा और उड़ाएंगे पतंग,
कुछ नई यादें बनाएंगे अपनों के संग ।
            रोज कुछ नया सीखेंगे,
            कुछ नया सिखाएंगे,
            हो गए थे कभी काम से तंग,
            मिला है कुछ वक्त बिताने को अपनों के संग ।
रात देर तक जागते थे, 
सुबह काम पर जल्दी भागते थे,
थी कभी चैन और सुकून भंग, 
अब अपनी भी नींद पूरी करें अपनों के संग ।
            कभी पराठे खाते थे,
            कभी खाना आधा छोड़ जाते थे,
            अब तो स्वादिष्ट लगता है चावल और रसम
            क्योंकि वक्त गुजर रहा है अपनों के संग ।
लॉक डाउन तो बहाना है,
वक्त परिवार के साथ बिताना है,
यह सोचकर लड़े कोरोना से जंग,
निश्चिंत रहे घर पर अपनों के संग । #Apon_ke_sang
#poetry
अपनों के संग 

सोचते थे किसी वक्त,
फुर्सत मिल जाए काम से कमबख्त,
खाएंगे मीठा और उड़ाएंगे पतंग,
कुछ नई यादें बनाएंगे अपनों के संग ।
            रोज कुछ नया सीखेंगे,
            कुछ नया सिखाएंगे,
            हो गए थे कभी काम से तंग,
            मिला है कुछ वक्त बिताने को अपनों के संग ।
रात देर तक जागते थे, 
सुबह काम पर जल्दी भागते थे,
थी कभी चैन और सुकून भंग, 
अब अपनी भी नींद पूरी करें अपनों के संग ।
            कभी पराठे खाते थे,
            कभी खाना आधा छोड़ जाते थे,
            अब तो स्वादिष्ट लगता है चावल और रसम
            क्योंकि वक्त गुजर रहा है अपनों के संग ।
लॉक डाउन तो बहाना है,
वक्त परिवार के साथ बिताना है,
यह सोचकर लड़े कोरोना से जंग,
निश्चिंत रहे घर पर अपनों के संग । #Apon_ke_sang
#poetry
srishtidewangan5824

Srishti

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