Nojoto: Largest Storytelling Platform

अल्फाज़ों मे भी *न बयाँ हो वो आबंध* हो तुम, जो सु

अल्फाज़ों मे भी *न बयाँ हो वो आबंध* हो तुम, 
जो सुनाता हूँ सबको, कोई *मधुर संगीत* हो तुम। 
 *उस राधा सा ठहराव तुम* में, 
व्याकुल सा मन हूँ मैं... 
सुनो इस *'सोनू' को निहारत रहने का दास* बना लो तुम। 

एक *अजीब सा कौतुहल* है मन का, 
कभी *सुनाऊँगा* 
जब समक्ष होगे मेरे, आँचल से इक पल की छाँव कर ही देना तुम। 

उस *राग की परिभाषा* भी अजीब होगी 'अनु'
बस *परिभाषित भी कर देना तुम*।

©अभिषेक मिश्रा "अभि"
  #Relationship
#सोनू_की_कलम_से 
#प्रेम