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वक्त की दीवारों से घिर गया हूँ। चलते चलते कहीं गिर

वक्त की दीवारों से घिर गया हूँ।
चलते चलते कहीं गिर गया हूँ।।
अपने ही मुझसे रिश्ता तोड़ चले हैं।
सहारा लेने में जिधर गया हूँ ।।
अब टूटकर जीने में रखा क्या है।
मैं वह आईना हूँ जो बिखर गया हूँ।।
हर शख्स अब शिकायत करने लगा है।
जब भी मिलने में किसी के घर गया हूँ।।
तन्हाई अब मेरी जिंदगी बन गई है ।
लगता है मैं जीते जीते मर गया हूँ ।।

©Shubham Bhardwaj
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