शब्दों को पिरोने का सलीका ढूंढ रहा हूँ खुद में तुझे जीने का तरीका ढूंढ रहा हूँ। किसी से मोहब्बत हो जाए दुबारा मुझको इस वजह से खुद नई प्रेमिका ढूंढ रहा हूँ। हो चंचलता तितली जैसी चांद की शीतलता समर्पण भावो से भरी बालिका ढूंढ रहा हूँ न हो उसमे तेज़ किसी ज्योति ज्वाला जैसी शबनम की ओस वाली निहारिका ढूंढ रहा हूँ। न हो उसमे अकड़ न हो ऊँचे होने का दम्भ ज़मीन पर फैली कोमल लतिका खोज रहा हूँ। खिलने को मैं दूँगा जो मांगे अवसर मुझसे मैं भँवरों वाली फूल नही कलिका ढूंढ रहा हूँ। भले न आती हो उसे कोई रंग में ढलने की कला मुझे अवशोषित करने को कालिका ढूंढ रहा हूँ। थोड़ी बहुत ही सही हो शब्दों का ज्ञान उसे अपनी पूर्ण कविता के लिए लेखिका ढूंढ रहा हूँ। लोगो से सुना है जीवन एक रंगमंच जैसी है उस पर अभिनय करने को नायिका ढूंढ रहा हूँ। वर्तमान परिवेश बहुत ही बदला बदला सा है जो कर सके सम्मान ऐसी सेविका ढूंढ रहा हूँ। देना चाहता है #हर्षित एक इश्तिहार ज़माने में अपने शहर की सर्व चर्चित पत्रिका ढूंढ रहा हूँ। ©Harshit Raj Nirmal