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....चुनावी गड्डा... एक गड्डा करे ,तो दूजा गड्डा भर

....चुनावी गड्डा...
एक गड्डा करे ,तो दूजा गड्डा भरे!
नेता मेरे देश के, ये कैसी बात करे...!!
रोडों के गड्ढे भरे नहीं
जाने वो कौन से गड्ढे हैं
भर रहे थे तुम जिनको
वो तो अमीरों के अड्डे हैं!
कुछ पैसे देकर किसानों को
यूँ झुनझुना पकड़ा दिया
पंचवर्षीय योजनाओं को
रस्ता पहले ही दिखला दिया
गऊ माता रस्ता ताक रही
उसे सर पे कब बिठाओगे
वो कट के अब भी बिक रही
उसे वो मान कब दिलाओगे
हुआ राम का वनवास ना पूरा
तुम अज्ञात वास पूरा कर आये
विदेश की धरती पर क्यों
नूरा कुश्ती कर आये
देख बाहुबली आज भी
क्यूँ हर गरीब डरे
नेता मेरे देश के
 ये कैसी बात करे.....!!
बेरोजगारी जोरों पर है
ना विश्वास ओरों पर है
अच्छे दिन रास ना आये
पैसा अब भी पास ना आये
विकास रस्ता भूल चुका है
शहरी झूला झूल चुका है
निर्धन अब भी रोजगार ताके
गरीब खाली बटुवा  झांके
अंतरिक्ष उड़ान से उसे क्या लेना
झूठी शान से उसे क्या लेना
वो तो  दो वक्त की रोटी चाहे
अच्छा भविष्य सुरक्षित बेटी चाहे
कारोबार काहे ठप कराया
काला धन भी वापस ना आया
नोट बंदी काले नोट बंद कर ना पाई
महिलाओं ने भी जमा पूँजी गवाँई
चोर चौकीदार की बात पर 
अब हर चौकीदार डरे
नेता मेरे देश के, ये कैसी बात करे।
एक गड्डा करे, तो दूजा गड्डा भरे
नेता मेरे देश के, ये कैसी बात करे।

यह किसी के विरुद्ध नहीं लिखा गया है कृपया इसे एक आलोचना के रूप में ही लिया जाये।
प्रजातंत्र में आलोचना जरूरी है जो उसे सही रास्ता दिखाती है।
रचयिता:- बलवन्त रौतेला (B.S.R.)
                   रूद्रपुर  04/04/2019
                               7:52 am
....चुनावी गड्डा...
एक गड्डा करे ,तो दूजा गड्डा भरे!
नेता मेरे देश के, ये कैसी बात करे...!!
रोडों के गड्ढे भरे नहीं
जाने वो कौन से गड्ढे हैं
भर रहे थे तुम जिनको
वो तो अमीरों के अड्डे हैं!
कुछ पैसे देकर किसानों को
यूँ झुनझुना पकड़ा दिया
पंचवर्षीय योजनाओं को
रस्ता पहले ही दिखला दिया
गऊ माता रस्ता ताक रही
उसे सर पे कब बिठाओगे
वो कट के अब भी बिक रही
उसे वो मान कब दिलाओगे
हुआ राम का वनवास ना पूरा
तुम अज्ञात वास पूरा कर आये
विदेश की धरती पर क्यों
नूरा कुश्ती कर आये
देख बाहुबली आज भी
क्यूँ हर गरीब डरे
नेता मेरे देश के
 ये कैसी बात करे.....!!
बेरोजगारी जोरों पर है
ना विश्वास ओरों पर है
अच्छे दिन रास ना आये
पैसा अब भी पास ना आये
विकास रस्ता भूल चुका है
शहरी झूला झूल चुका है
निर्धन अब भी रोजगार ताके
गरीब खाली बटुवा  झांके
अंतरिक्ष उड़ान से उसे क्या लेना
झूठी शान से उसे क्या लेना
वो तो  दो वक्त की रोटी चाहे
अच्छा भविष्य सुरक्षित बेटी चाहे
कारोबार काहे ठप कराया
काला धन भी वापस ना आया
नोट बंदी काले नोट बंद कर ना पाई
महिलाओं ने भी जमा पूँजी गवाँई
चोर चौकीदार की बात पर 
अब हर चौकीदार डरे
नेता मेरे देश के, ये कैसी बात करे।
एक गड्डा करे, तो दूजा गड्डा भरे
नेता मेरे देश के, ये कैसी बात करे।

यह किसी के विरुद्ध नहीं लिखा गया है कृपया इसे एक आलोचना के रूप में ही लिया जाये।
प्रजातंत्र में आलोचना जरूरी है जो उसे सही रास्ता दिखाती है।
रचयिता:- बलवन्त रौतेला (B.S.R.)
                   रूद्रपुर  04/04/2019
                               7:52 am
balwantrautela5554

मलंग

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