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तीरगी वो मिटा नहीं सकता अपना जो घर जला नही

तीरगी  वो   मिटा   नहीं   सकता 
अपना जो घर जला नहीं सकता 

दर  पे  दाता   के  आ  गया  हूँ मैं 
खाली दामन मैं जा  नहीं सकता 

मैं  करूँ   लाख  कोशिशें   लेकिन 
आप  को अब  भुला नहीं  सकता 

मेरा  रब  पर   यक़ीने  कामिल  है 
मुझ को दर दर फ़िरा नहीं सकता 

हक़   पे  रहते  हैं जो   सदा  यारो 
उन को ज़ालिम  डरा नहीं सकता 

वो ना चाहे तो  कोई  भी अकरम  
मुझ पे  जादू   चला  नहीं   सकता [[ अकरम तिलहरी की शायरी ]]
तीरगी  वो   मिटा   नहीं   सकता 
अपना जो घर जला नहीं सकता 

दर  पे  दाता   के  आ  गया  हूँ मैं 
खाली दामन मैं जा  नहीं सकता 

मैं  करूँ   लाख  कोशिशें   लेकिन 
आप  को अब  भुला नहीं  सकता 

मेरा  रब  पर   यक़ीने  कामिल  है 
मुझ को दर दर फ़िरा नहीं सकता 

हक़   पे  रहते  हैं जो   सदा  यारो 
उन को ज़ालिम  डरा नहीं सकता 

वो ना चाहे तो  कोई  भी अकरम  
मुझ पे  जादू   चला  नहीं   सकता [[ अकरम तिलहरी की शायरी ]]